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स्तनपान (BREAST FEEDING)
जन्म से छह माह तक माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार होता है। जीवन के शुरुआती छह महीनो में बच्चे की शारीरिक बड़त एवं विकाश में सहायता देने के लिए माँ का दूध सही पोषक संतुलन देता है। बच्चे को अलग से पानी की भी जरूरत नहीं होती है। इसमें ऊपर से डॉक्टर की सलाह से दिये गए विटामिन डी एवं आइरन की दवा के अलावा किसी प्रकार की घुट्टी, पियां, या शहद आदि की जरूरत नहीं होती है। विटामिन डी बच्चे की हड्डियों एवं दाँत के निकालने में मदद करता है और आइरन की दवा छोटे बच्चों में होने वाली खून की कमी से बचाती है। कभी-कभी डॉक्टर थोड़े समय के लिए बच्चे की जरूरत के अनुसार ज़िंक या मल्टीविटामिन देने की भी सलाह दे सकते हैं।
कभी-कभी ऑपरेशन से डेलिवेरी होने के कारण या बच्चे के बीमार या कम वजन के होने के कारण शुरू के दिनों में माँ का दूध पर्याप्त नहीं हो पता है, ऐसी परिस्थिति में माँ को एवं परिवार को थोड़ी ज्यादा मेहनत करने की जरूरत पड़ सकती है। यदि इस प्रकार नैदानिक स्थिति (clinical condition) में माँ पहले बच्चे को अपने आँचल का दूध ही पिलाये। लगभग 10 से 15 मिनट तक अपना दूध पिलाने / या उसकी कोशिश करने के बाद ही ऊपर का दूध पिलाएँ। इसमें ध्यान रखें की ऊपर का दूध कटोरी चम्मच से ही पिलाएँ, कभी भी बॉटल से दूध ना पिलाएँ। बॉटल से दूध पिलाना वैसे तो चम्मच से दूध पिलाने के मुक़ाबले काफी सरल होता है एवं बच्चा भी ज्यादा अच्छे से पीता है, पर इसमें मुश्किल यह होती है की बॉटल से दूध पीने वाले ज़्यादातर बच्चे माँ के आँचल से दूध पीना छोड़ देते हैं। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि बॉटल से दूध पीना ज्यादा सरल होता है जबकि माँ के आँचल से दूध पीना थोड़ा मेहनत का काम होता है। जबकि कटोरी-चम्मच से दूध पीना अधिकतर बच्चों को ज़्यादा अच्छा नहीं लगता इसीलिए वह माँ के आँचल से दूध पीना नहीं छोडते हैं। इसके अलावा बॉटल से दूध पीने वाले बच्चों को उल्टी/दस्त एवं न्यूमोनिया जैसी बीमारियों की संभावना आँचल से दूध पीने वाले बच्चों की तुलना में दो-से-तीन गुना ज्यादा होती है।
ध्यान रखें:
बच्चे को ज्यादा-से-ज्यादा माँ का दूध ही पिलाने की कोशिश करें। छोटे बच्चे कई बार ज्यादा सोते हैं एवं दूध पीने के लिए भी अपने से नहीं उठते हैं, ऐसे में यदि दूध पिये हुये बच्चे को 3 घंटे हो चुके हैं पर वह अभी भी नहीं उठा है तो बच्चे को उठा कर भी दूध पीला सकते हैं। बच्चे की पीठ को हाथ से सहलाने या बच्चे के पैर के पंजों पर उँगलियों से धीरे-धीरे से Flick करने/मारने से बच्चे को उठाया जा सकता है।
एक बार जब भी बच्चा दूध पीता है तो कोशिश करें की बच्चा कम-से-कम 15 मिनट तक आँचल से दूध पीता रहे। इस बीच अगर बच्चा सोने लगे/या चूसना/सक करना कम कर दे तो उसे पीठ पर हाथ फेर कर जागा कर रखें।
कोशिश करें की बच्चे को आप एक हाथ से ही पकड़े जिससे आपका दूसरा हाथ का उपयोग आँचल को सपोर्ट करने या बच्चे को सोने से रोकने में कर सकती हैं। माँ यदि चाहे तो बच्चे को सहारा देने की लिए तकिये का उपयोग भी कर सकती हैं।
बच्चे को दूध पिलाते समय माँ को पूरी कोशिश होनी चाहिए की उनकी कमर सीधी रहे एवं उनकी बैठक आरामदायक हो। असुविधाजनक अवस्था में ज्यादा देर दूध पिलाना संभव नहीं तो पाता है।
यदि बच्चा 20 मिनट से ज्यादा दूध पीता रहता है या 2 घंटे से पहले ही जल्दी-जल्दी भूखा होकर रोने लगता है या बच्चे का साप्ताहिक वजन बड्ने की रफ्तार सामान्य से कम है तो इसका मतलब है की माँ का दूध अभी थोड़ा कम ही आ रहा है।
स्तनपान (Breastfeeding) के लाभ:
बच्चे को सही मात्रा में पोषक तत्व मिलते है।
बच्चे की रोगप्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है।
उल्टी/दस्त एवं न्यूमोनिया जैसी बीमारियों की संभावना कम होती है।
बच्चे और माँ का भावुक-बंधन (Emotional Bonding) बेहतर होता है।
स्तनपान कराने वाली माओं की भी सेहत बेहतर होती है।
छह माह का होने पर बच्चे को क्या खिलाएँ?
पूरक आहार (6 से 12 महीने) (COMPLEMENTARY FEEDING)
माँ का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार होता है एवं छ माह की उम्र तक बच्चे का सम्पूर्ण पोषण करता है। छह माह तक ज़्यादातर शिशुओं को माँ के दूध के अलावा किसी भी प्रकार के दूध, खाने, या पानी की आवश्यकता नहीं होती है। पर छह माह के उपरांत शिशु को माँ के दूध के साथ पूरक आहार (Complementary or Weaning feed) की आवश्यकता भी होती है।
छह माह तक बच्चे का वजन जन्म के वजन से लगभग दोगुना हो जाता है एवं ऊंचाई लगभग 35% तक बड़ जाती है। उसके मस्तिष्क का भी अभी बहुत तेजी से विकाश हो रहा होता है। अब उसकी दूध निगलने के साथ चबाने की क्षमता भी विकसित हो गई है। अब उसका पाचन तंत्र एवं किडनी उसके शुरुआती खाने को ग्रहण करने के लिए तैयार है। बच्चे की तेजी से होने वाली शारीरिक बड़त एवं विकाश उसके आहार के पोषक तत्वों पर निर्भर होती है।
छह माह की उम्र में शिशु का पेट उसकी मुट्ठी के बराबर होता है लेकिन उसकी पोषक तत्वों की जरूरतें लगातार बड़ रही होती हैं, इसीलिए उसका खाना उसका खाना ऊर्जा एवं पोषक तत्वों से भरपूर, पचने में आसान, एवं साफ और स्वच्छता युक्त होना चाहिए।
पूरक आहार क्या है? पूरक आहार दूध से गाड़ा एवं पौष्टिक होना चाहिए। शुरू में यह थोड़ा पनीला / पतला घोल या मुलायम लुगदी या पेस्ट जैसे रूप होना चाहिए धीरे-धीरे कुछ महीनों में अर्ध-ठोस (Semisolid) रूप में हो सकता है।
ऊपर का दूध (गाय, भैंस, या डब्बे का दूध) पूरक आहार का भाग तो हो सकता है पर पूरक आहार की जगह नहीं ले सकता है। चूंकि बच्चे के दाँत नहीं होते हैं एवं अभी तक उसने सिर्फ दूध ही पिया होता है, कुछ बच्चे शुरू-शुरू में पूरक-आहार को अच्छे से नहीं खाते एवं बाहर निकलते है। ऐसे में धैर्य से लें एवं कोशिश करते रहें। यह सिर्फ इसीलिए होता है क्योंकि बच्चे ने अभी तक ऐसा कुछ नहीं खाया होता है।
पूरक-आहार के तौर पर बच्चे को क्या खिला सकते हैं?—पूरक-आहार में बच्चे को सभी प्रकार के अनाज एवं फल खिला सकते हैं। सूजी या आटे का हलुआ, बारीक दलिया, साबूदाने की खीर, अच्छी पकी हुई खिचड़ी, अच्छे से मीड़ कर दूध-रोटी, मसली हुई सब्जियाँ और फल जैसे आलू, कद्दू, आम, केला, आदि; उबाल के सेब का गूदा, केले का शेक, सेब का शेक, आदि सब खिला सकते हैं।
आहार का स्वरूप (Texture) कैसा हो? ध्यान रखना है की शुरुआत में बच्चा थोड़ा पनीला / पतला घोल या मुलायम लुगदी या पेस्ट जैसे स्वरूप में ही ज़्यादातर आहार खाना पसंद करते हैं। धीरे-धीरे कुछ हफ़्तों में इसे थोड़ा-थोड़ा करके गाड़ा किया जा सकता है।
प्रतिदिन कितना आहार दें? प्रतिदिन 2-3 बार आहार से शुरुआत करें एवं धीरे-धीरे इसे बड़ाते जाएँ। एक वर्ष की उम्र तक शिशु को माँ के दूध के साथ प्रतिदिन 4--5 बार पूरक-आहार भी खिलाना चाहिए।
पाँच-छह माह की उम्र में, शिशु लगभग 8 बार दूध पीता है, ऐसे में शुरुआत में माँ दिन में 2--3 बार अपने दूध की जगह अर्ध-ठोस आहार खिलाएँ। ध्यान रखें की इसे उचित मात्रा में दिया जाए। इस उम्र में बच्चा एक बार में लगभग 100 एमएल दूध पीता है, इसीलिए पूरक-आहार की मात्रा भी लगभग आधी से एक कटोरी होनी चाहिए।
कैसे आहार दें? प्रारम्भ में शिशु को कटोरी-चम्मच से आहार देना शुरू करें। कुछ महीनो में पनीला / पतला घोल जैसा आहार शिशु सीधा कप से भी दिया जा सकता है।
पानी कितना पिलाएँ: पहले छह माह तक जब तक बच्चा सिर्फ माँ का दूध पीता है उसे अलग से पानी की आवश्यकता नहीं होती है। पर छह माह के उपरांत, जब बच्चा अर्ध-ठोस पूरक-आहार खाने लगता है, उसे पानी भी पिलाना आवश्यक है। बच्चे को दिन में 3 से 4 बार 6-8 चम्मच पानी पिलाना उचित होगा। गर्मी के मौसम में पानी की मात्रा बड़ाई जा सकती है।
कैसे पता चलेगा की बच्चा भूखा है? रोना, गुस्से में हाथ-पैर चलाना, खाने की ओर इसरा करना, खाना पास लाने पर मुंह खोलना, चम्मच तक पहुँचने के लिए सिर ऊंचा करना।
आहार जारी रखने के संकेत: देखभाल करने वाले व्यक्ति की ओर मुस्कराना, अस्पष्ट ध्वनि (ऊँ, ऊँ) निकालना, चम्मच पास में लाने पर मुह्न खोलना, आदि
पेट भरा होने के संकेत: चम्मच पास लाने पर सिर हटा लेना, खाने की रफ्तार धीमी होना, मुह्न को कस कर बंद कर लेना, खाने को हाथ से दूर करना, आदि।
ध्यान देने योग्य बातें:
बार-बार आँचल या बॉटल का दूध या पिलाते रहने से बच्चे को खुल कर भूख नहीं लग पाती जिससे वह खुद से खाने की मांग नहीं करता और जबरदस्ती देने पर कभी-कभी निकाल देता है। ऐसे में बच्चे को थोड़ा समय देना चाहिए।
यह फैसला लेने से पहले की कोई भी खाना बच्चे को पसंद है या नहीं, उसे कम-से-कम 6--8 बार देने की कोशिश करें। कभी-कभी शुरू में एक-दो बार बच्चे नया आहार/खाना नापसंद कर देते हैं पर बाद में अच्छे से खाने लगते हैं।
अलग-अलग तरह के स्वाद और चबाने पर अलग-अलग लाग्ने वाले खानों का आहार बच्चे को देना उसके स्वाद समझने की समझ को बेहतर बनाता है।
समय-समय पर आहार/खाने में विविधता लाने की कोशिश करें।
खाने के वक्त बच्चे को परिवार के साथ बैठाएँ ताकि वह देख कर सीख सके।
बच्चे को आहार देने से पहले अपने हाथ साबुन-पानी से धोएँ।
बच्चे के आहार में एक बार में सिर्फ एक ही नई चीज शामिल करें। इससे यदि उसे किसी खास चीज से एलर्जी है तो यह जानना सरल हो जाता है। कोई भी नया खाना देने पर हमेशा अवांछित प्रतिक्रियाओं जैसे चिक्कते आदि पर नजर रखें।
आहार देना शुरू करने से पहले सुनिश्चित करें की बच्चा आरामदायक अवस्था में बैठा है।
जब भी बच्चा खाना खा रहा हो हमेशा उसके साथ रहें।
शुरुआत में प्लास्टिक का मुलायम चम्मच धातु के चम्मच से बेहतर होगा।
खाना बनाकर तुरंत खिलाने से उसका स्वाद बेहतर होता है एवं बच्चा ज्यादा स्वाद से खाता है।
क्या ना करें:
बार-बार थोड़ा-थोड़ा खिलाना जैसे कभी एक बिस्किट खिला दिया या कभी खाने का एक निवाला खिला दिया।
शुरुआत में ही ज्यादा गाड़ा या दानेदार खाना खिलाना।
बच्चा यदि शुरू में अर्ध-ठोस पूरक-आहार ना खाये तो उसकी जगह ऊपर का दूध पिलाना।
जबरदस्ती खाना खिलाने की कोशिश करना।
पूरक आहार (12 से 24 महीने) (COMPLEMENTARY FEEDING)
अब आपका बच्चा 1 वर्ष का हो गया है और उसकी शैतानियां बड़ती जा रही होंगी। तेजी से बड़ते बच्चे के पोषण और आहार की जरूरतें भी बड़ती जाती हैं।
एक वर्ष की आयु तक बहुत से बच्चे खड़े होने लगते है और सहारे के साथ चलने भी लगते हैं। उनकी साधारण गतिविधियां बड़ती जाती हैं। इस समय तक बच्चे का पाचन तंत्र काफी विकसित हो गया होता है और वह खाने को ज्यादा अच्छे से पचा सकता है। इस समय से आप बच्चे को थोड़े चबाने वाला खाना भी दे सकते हैं। देड़ वर्ष की उम्र तक वह छोटे-छोटे कौर भी खा सकता है।
छह माह से एक वर्ष के बीच बच्चे की पोषण जरूरतें लगभग तीन गुना बड़ जाती हैं, और अब माँ का दूध शिशु की पोषण की जरूरत का आधे से थोड़ा कम ही प्रदान कर पाता है। इसीलिए अब शिशु का आहार पोषण से भरपूर होना चाहिए।
इस समय बच्चे के लिए सबसे अच्छा खाना वह होगा जो बच्चे की बड़ती पोषण की जरूरतें पूरी कर सके। खाना ज्यादा नमकीन या ज्यादा मीठा भी नहीं होना चाहिए। बच्चे का खाना पूरी सफाई से ही बनाया जाये। साथ ही खाने में विविधता भी होती चाहिए।
बच्चे का खाना लजीज हों पर पौष्टिक भी हों जैसे:
खिचड़ी, उपमा, सब्जियां मिला हुआ पोहा, सब्जी और पराठा, रोटी-सब्जी, रोटी-दाल, सब्जियों का सूप, कस्टर्ड और शेक, आदि।
वेजीटेबल कटलेट, वेजीटेबल सेंडविच, पेनकेक, पराठा रोल, आदि।
सभी प्रकार के फल (बीज वाले फलों के साथ थोड़ा सावधानी बरतें) और सभी प्रकार की सब्जियाँ (पका के मुलायम की हुई) बच्चे को खाने में दिये जा सकते हैं।
पनीर और अंडे आदि भी बच्चे को खिलाये जा सकते हैं।
बच्चे को कितने बार खाना खिलाएँ: 3—4 बार खाना इसके साथ में सुबह और शाम का नाश्ता, बच्चे की खाने की मांग के अनुरूप दिये जा सकते हैं।
कितना खिलाएँ: ज़्यादातर बच्चे एक बार में लगभग 250 ml के कप के बराबर खाना खा लेते हैं।
खाना कैसा हो? एक वर्ष की उम्र तक बच्चा बाकी परिवारजनों के जैसा ही खाना उसको बच्चे के अनुरूप बदल कर (थोड़ा मुलायम बना कर और उसमें से कड़े भाग या बीज निकाल कर) खा सकता है।
खाना गले में फंसना (Choking): कभी-कभी बड़े निवाले, कड़े फल या सब्जियाँ जैसे गाजर आदि को अच्छे से पका कर या छोटा-छोटा काट कर या किस कर ही बच्चे खिलाएँ। अंगूर, चेरी, टमाटर आदि को भी छोटा-छोटा काट कर ही खिलाएँ।
ध्यान रखें:
बच्चे के परिवारजन उसके साथ ही खाना खाते हैं तो बच्चा ज्यादा अच्छे से अपना खाना खाता है।
बच्चे को छोटी थाली में पूरा भर कर खाना देने से अच्छा है की उतना ही खाना बड़ी थाली में दिया जाए इससे बच्चे को शुरू से ही थोड़ी खाली थाली दिखती है और वह अपने हिस्से का पूरा खाना खाएगा इसकी संभावना ज्यादा होती है।
हालांकि, माँ ध्यान रखे की बच्चे का पेट भी छोटा होता है, और उसे अनावश्यक जरूरत से ज्यादा खाना खाने के लिए जबरदस्ती ना करें। हर बच्चा अपनी भूख के अनुसार ही खाता है और उसे कितना खाना है यह बच्चे को ही निर्धारित करने दें।
बच्चों को उनका खाने का समय खुशनुमा बनाने की कोशिश करनी चाहिए:
इसके लिए हर दिन खाने का समय लगभग एक सा होना अच्छा है।
बच्चे की भूख का ध्यान रखें और जबरदस्ती ना करें। कभी भी बच्चे को ज़ोर-जबरदस्ती से या लालच देकर खाना खिलाने की कोशिश ना करें।
बीमारी में बच्चे को कैसे खिलाएँ?
आँचल का दूध (Breast Feeding) ज्यादा से ज्यादा कराएं।
उसे मुलायम खाना दें खासकर जब मुंह या गले में कोई अलसर (Ulcer) हों।
हर दो घंटे में थोड़ा-थोड़ा खाना दे सकते हैं।
उसे खाने के लिए प्रोत्साहित करें पर जबरदस्ती से ना खिलाएँ।
यदि बच्चे को दस्त या बुखार भी है तो उसे ज्यादा पानी या तरल देने की कोशिश करें।
दस्त में बार-बार थोड़ा-थोड़ा ओआरएस (ORS) का घोल भी पिलाते जाएँ।
जब बच्चा जागा हुआ एवं सतर्क (awake & alert) हो उसे तभी खाना खिलाएँ।
खाने में वह सब चीजें ज्यादा खिलाएँ जो बच्चे को ज्यादा पसंद हों।
खाना खिलाने से पहले उसे अच्छे से आरामदायक अवस्था में कर लें।
मेरा बच्चा खाना नहीं खाता है, मैं क्या करूँ? (MY CHILD DO NOT EAT WELL, WHAT SHOULD I DO?
छोटे बच्चों के साथ कई माता-पिता की शिकायत होती है की उनका बच्चा खाना नहीं खाता है। माँओं को बच्चों को बहला-फुसला कर, मोबाइल-टीवी दिखाकर, या कभी-कभी डांट कर अपने बच्चों को खाना खिलाना पड़ता है।
इसमें आगे कुछ बताने के पहले इन बच्चों के बारे में कुछ तथ्य जानना जरूरी है। क्या बच्चे का वजन एवं लंबाई अपनी उम्र के बच्चों के मुक़ाबले ठीक है? क्या बच्चे की शारीरिक गतिविधियां जैसे खेलना या शरारतें करना अच्छी हैं? क्या बच्चा अपने से कुछ खाता है (जैसे कुरकुरे, चिप्स, बिस्किट, आदि)? क्या बच्चा माँ का या बॉटल से बार-बार दूध पीता है? माँ बच्चे को कितनी कितनी देर में खाना खिलाने का प्रयत्न करती हैं? क्या खाने में ऐसी कोई चीज है जो बच्चा पसंद करता है?
जिन बच्चों का शारीरिक विकाश (Physical Growth) विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्रोथ चार्ट के अनुसार सामान्य है उनकी एक बात पक्की है की बच्चा अपनी जरूरत की कैलोरी तो खा ही लेता है। और इसीलिए इन माँओं को ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। हाँ, कुछ मायेँ यह कह सकती हैं की बच्चे की यह ग्रोथ उनके बच्चे को जबरदस्ती खाना खिलाने के कारण ही है। हालांकि यह बच्चे भी कुपोषण की शिकार हो सकते हैं, जैसे कोई बच्चा यदि ज्यादा बिस्कित, कुकुरे, चिप्स, आदि खाता है तो उसका वजन भी सामान्य या थोड़ा ज्यादा भी हो सकता है पर वह पौष्टिक खाना नहीं खा रहा है और उसको प्रोटीन या विटामिन या अन्य मिनेरल्स आदि की कमी हो सकती है।
यदि बच्चे की शारीरिक गतिविधियां जैसे खेलना या शरारतें करना या छोटे बच्चों का घर में यहाँ-वहाँ घुटने के बल या पैदल चलना या दौड़ना, आदि सामान्य हैं या माता-पिता की अनुसार ज्यादा हैं तो इन बच्चों के खाने के बारे में भी माओं को ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। कोई भी खेलता-कूदता बच्चा कभी भी भूखा नहीं रहता है। इन बच्चों को यदि हम ज़ोर-जबरदस्ती से खाना नहीं खिलाएंगे तो भी बच्चा अपनी जरूरत के अनुसार खाना मांग के या उनको ऑफर करने पर खा लेगा।
ज़ोर-जबरदस्ती से खाना खिलाने पर अधिकतर बच्चों को खाने से घृणा (Aversion) होने लगता है। ज़्यादातर माओं की आदत होती है की हर दो-तीन घंटे में बच्चे को कुछ-न-कुछ खिलना चाहती हैं। यह माँ का प्यार होता है। पर इससे नुकसान यह होता है की बच्चे को अच्छे से भूख ही नहीं लग पाती है और वह अच्छे-से-अच्छे खाने को देख कर भी दूर भागता है। इसका समाधान भी सामान्य है। बच्चे को जबरदस्ती खान खिलाने की जगह उनको खाना प्रस्तावित (Offer) करें। यदि उसका मन नहीं है तो जबरदस्ती ना करें बल्कि एक-दो घंटे बाद फिर से उसे खाना दिखा कर पूछें की उसको भूख लगी है क्या। कई बार बच्चे के सामने वही खाना चाव से उसे दिखा कर खाने से भी बच्चा खाने की तरफ आकर्षित होता है।
कुछ बच्चों को माँ का या बॉटल का दूध कुछ ज्यादा ही पसंद होता है और वह हर बार सिर्फ दूध पीना ही चाहता है। हम यह जानते हैं की छह माह के बाद माँ का दूध बच्चे के लिए सम्पूर्ण आहार नहीं होता है और उसे पूरक आहार की जरूरत होती है। ऐसे में छह माह से दो-ढाई साल तक माँ अपना दूध पीला सकती हैं, पर उनको बड्ते बच्चे की जरूरत के अनुसार अर्ध-ठोस आहार भी देते रहना चाहिए। मोटे तौर पर छह माह से आठ माह तक माँ 4-6 बार अपना दूध पिलाती रहें व 2-3 बार अर्ध-ठोस आहार भी देती रहें। एक बार में जब माँ दूध पिलाएंगी तो उस समय दूसरा आहार ना दें और जब अर्ध-ठोस आहार दें तब अपना दूध ना पिलाएँ। कुछ माँ एक साल से बड़े बच्चों को भी दो-दो तीन-तीन घंटे में अपना दूध पिलाती रहती हैं। ऐसे में बच्चे को दूसरा आहार खाने के लिए खुलकर भूख नहीं लग पाती है। ऐसे में बच्चा दूसरा आहार भी नहीं खाता है एवं कुपोषण का शिकार भी होता है।
ठीक इसी प्रकार से बॉटल से दूध पीने वाले बच्चों को दिक्कत होती है।
कुछ माँ बताती हैं की बच्चा मैगी या अन्य नूडल्स वगैरह तो स्वाद से खाता है पर घर का बनाया खाना नहीं खाता है। ऐसे में हमें यह सोचना चाहिए की ऐसा क्या स्वाद है इन खानों में और अपने खाने को भी उसी प्रकार स्वादिष्ट बनाने की कोशिश करनी चाहिए।
बच्चों को शुरू से ही फल एवं सब्जियाँ खाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे ना सिर्फ जरूरी विटामिन, मिनेरल्स एवं शरीर के जरूरी अन्य तत्व मिलते हैं, इनके प्राकृतिक फाइबर बच्चे को होने वाली कब्ज़ की शिकायत भी नहीं होने देते।
ध्यान देने योग्य बातें:
बच्चों के खाने में शक्कर की मात्रा कम-से-कम रखें। ज्यादा शक्कर बच्चे की भूख तो मिटा देती है पर इससे कुपोषण का खतरा होता है। नमक भी थोड़ा कम मात्रा में ही प्रयोग करें।
छह माह से बड़े बच्चे को आँचल के दूध के साथ अर्ध-ठोस आहार भी बहुत जरूरी है। शुरू में दिन में दो बार आँचल के दूध की जगह अर्ध-ठोस आहार खिलाने से चालू करें एवं धीरे-धीरे अर्ध-ठोस आहार की मात्र एवं संख्या बदते जाए।
बच्चे को ज़ोर-जबरदस्ती से खाना खिलाने की जगे खाना प्रस्तावित (Offer) करें एवं उसे अपने से ही खाना खाने के लिए प्रोत्साहित करें। जबरदस्ती से खाना खिलाने से बच्चों को अच्छे-से-अच्छे खाने से भी घृणा (Aversion) हो जाती है।
खेलते-कूदते बच्चे के खाने के बारे में अनावश्यक चिंता ना करें।
बॉटल से अपने बच्चे को दूध पिलाने की चेष्टा कभी भी ना करें। इससे ना सिर्फ बच्चा अपनी माँ का दूध पीना जल्दी छोड़ देता है, बॉटल फीड करने वाले बच्चों को छाती के संक्रमण, न्यूमोनिया, दस्त-उल्टी, कान के संक्रमण, आदि की संभावना बाकी बच्चों से कई गुना ज्यादा होती है। यदि आपका बच्चा पहले से ही बॉटल से दूध पी रहा है तो उसे जल्द-से-जल्द छुड़ाने का प्रयत्न करें। इसके लिए अपने शिशुरोग विशेषज्ञ की सलाह लें।
बच्चों को शुरू से ही फल एवं सब्जियाँ खाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
बच्चों में कब्ज़ की शिकायत (CONSTIPATION IN CHILDREN)
छोटे बच्चों के साथ कई माता-पिता की शिकायत होती है की उनका बच्चा कड़ी पोट्टी जाता है या दो-तीन दिन में एक बार पोट्टी जाता है। यह बच्चों की सामान्य शिकायत है एवं हर 10 में से 2—4 बच्चों को यह दिक्कत होती है।
कब्ज़ का सीधा संबंध खाने से होता है। हमारे खाने का बहुत सा भाग आंतों में पच कर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन आदि के रूप में के रूप में शरीर में चला (absorb) जाता है। खाने का कुछ भाग आंतों में पूरी तरह से नहीं पचता है एवं यह भाग ही पोट्टी (टट्टी) का बड़ा भाग बनाता है। इनको फाइबर कहते है। यह स्वस्थ आहार का बहुत ही अहम भाग होता है। फाइबर ना सिर्फ आहार नाल को साफ रखने में मदद करते हैं, यह आंतों में पलने वाले एवं हमारे लिए अति उपयोगी और बहुत जरूरी बैक्टीरिया के लिए बहुत ही आवश्यक होता है। खाने में फाइबर युक्त पौष्टिक आहार की कमी ही कब्ज़ का प्रमुख कारण होती है। लंबे समय तक इस तरीके के आहार से आतों के कैंसर की संभावना भी बड़ जाती है।
सभी प्रकार के मौसमी फल (जैसे पपीता, अमरूद, सेब, आम, आदि) एवं सब्जियाँ (जैसे हरी पत्तेदार सब्जियाँ, लौकी, तुरई, भिंडी, करेला, बीन्स, आदि) आहार में फाइबर के मुख्य श्रोत होते है। गेहूं में भी पर्याप्त मात्रा में फाइबर होते हैं यह उसकी सबसे ऊपरी छिलके वाली परत में होते है, पर मैदे में गेंहू की इस परत के निकाल जाने के कारण इसमें फाइबर के गुण खत्म हो जाते है।
दूध, घी, तेल, शक्कर, गुड, मैदा, मांसाहारी खाने, अंडे, आदि में कैलोरी को पर्याप्त होती हैं पर फाइबर नगण्य मात्रा में ही होते हैं। जो बच्चे इस तरह के खाने पर ज्यादा निर्भर होते हैं उनको कब्ज़ की शिकायत ज्यादा होती है।
बच्चे में कड़ी टट्टी जाना या दिन में एक बार से कम टट्टी जाना कब्ज़ की निशानी है। कड़ी टट्टी ना सिर्फ दर्दनाक होती है इससे बच्चे के गुदा में भी घाव हो सकते है। बच्चों में कब्ज़ की शिकायत होने पर अपने बच्चों के डॉक्टर से परामर्श आवश्यक लें। खाने में मौसमी फल एवं सब्जियाँ बड़ाने से कब्ज़ की शिकायत पर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।
अगर मुझे दूध कम आता है तो मैं क्या करूँ? (INADEQUATE BREAST MILK PRODUCTION)
यदि आपको लगता है की आपको दूध कम आता है और आपके बच्चे के लिए पूरा नहीं होता है तो यह बहुत चिंता की बात नहीं है।
यदि आपका बच्चा सिर्फ आपका दूध पी रहा है एवं उसकी ग्रोथ सही तरीके से हो रही है तो इसका मतलब है की आपको दूध अच्छे से आ रहा है और आप बिलकुल भी चिंता ना करें।
पर यदि बच्चे की ग्रोथ पीछे है या आप अपने दूध के साथ ऊपर का डिब्बे का फॉर्मूला मिल्क या गाय/भैंस का दूध भी पिला रही हैं, तो आप निम्न लिखित उपाय कर सकती हैं:
आप दिन में कम-से-कम 2—3 लीटर या 10-12 गिलास पानी पिये। यह देखा गया है की बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ के शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर दूध बनाना कम कर देता है। शरीर में पानी की कमी होने पर पेशाब का रंग भी पीला होने लगता है। आपने इतना पानी पीना है की आपकी पेशाब का रंग पानी जैसा हो। गाड़ी पीली पेशाब मतलब शरीर में पानी की कमी।
बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ को अपने खाने का ध्यान भी रखना चाहिए। खाने में सभी प्रकार के फल एवं सब्जियाँ एवं अनाज लेना अच्छा होता है। हालांकि, किसी विशेष परहेज की आवश्यकता नहीं होती है, पर बाजार के खुले खाने, चाट-पकोड़ी, शादी-ब्याह के खाने आदि से बचना चाहिए।
यह देखा गया है की अच्छी नींद ना लेने से माँ के दूध में कमी हो सकती है। हालांकि, बच्चे को लगभग हर दो घंटे में दूध पिलाना पड़ता है और लगातार लंबी नींद लेना कठिन होता है, पर माँ को टुकड़ों में कम-से-कम 8-10 घंटे की लेना जरूरी है।
यह भी देखा गया है की जो माँएं जरूरत से ज्यादा चिंता करती हैं या गुस्सा करती हैं उनको दूध निकालना कम हो जाता है। एवं जो माँएं ज्यादा खुश रहती हैं उनके बच्चों को दूध की प्रचुरता होती है।
बच्चे का माँ के आँचल से दूध पीना माँ के दूध बनने का सबसे प्रमुख कारण होता है। इसीलिए स्वस्थ बच्चों में यदि ऊपर का दूध पिलाना भी पड़े तो पहले अपने बच्चे को 10—15 मिनट तक अपने आँचल से दूध पिलाने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चा जितना ज्यादा आँचल से दूध पियेगा (Breast Feeding करेगा) माँ के आँचल में उतना ज्यादा दूध बनेगा।
ध्यान रखें की यदि बच्चे को ऊपर का दूध पिलाना पड़े तो वह उसे 15-20 मिनट तक आँचल से दूध पिलाने के बाद ही कटोरी चम्मच से ही पिलाएँ, कभी भी बॉटल से दूध ना पिलाएँ। बॉटल से दूध पीने वाले ज़्यादातर बच्चे माँ के आँचल से दूध पीना छोड़ देते हैं। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि बॉटल से दूध पीना ज्यादा सरल होता है जबकि माँ के आँचल से दूध पीना थोड़ा मेहनत का काम होता है। इसके अलावा बॉटल से दूध पीने वाले बच्चों को उल्टी/दस्त एवं न्यूमोनिया जैसी बीमारियों की संभावना आँचल से दूध पीने वाले बच्चों की तुलना में दो-से-तीन गुना ज्यादा होती है।
बच्चे का विकाश (CHILD GROWTH) सही तरीके से हो रहा है की नहीं हमें कैसे पता चलेगा?
समय-समय पर बच्चे का वजन, लंबाई और बच्चे के बढ़ते हुए सिर की साइज़ को नाप कर उसे बच्चे की उम्र एवं लिंग के अनुसार ग्रोथ चार्ट पर प्लॉट करके देखना परिवारजन एवं बच्चों के डॉक्टर दोनों के लिए काफी उपयोगी होता है। यह चार्ट बच्चे की उम्र एवं उसी लिंग के स्वस्थ बच्चों के बीच आपके बच्चे की वास्तविक स्थिति दर्शाता है। ग्रोथ कम होने के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे बच्चे के खाने में कमी, ।
हालांकि हर बच्चे की ग्रोथ को सेंटाइल चार्ट के बीच में नहीं लाया जा सकता (जैसे आनुवंशिक कारणों में), पर कई बार सामान्य कमियाँ जैसे खान-पान में कमी या विटामिन डी की कमी या कुछ और कमियाँ आसानी से पूरी की जा सकती हैं।