कोविड-19 लक्षण, इलाज और बचाव
कोविड-19 संक्रमण कैसे होता है और इससे बचाव के क्या तरीके हैं?
कोविड-19 संक्रमण कोरोना वाइरस से होने वाला श्वसन तंत्र एवं फेफड़ों का संक्रमण है। इससे साधारण बुखार और जुकाम-खांसी से लेकर गंभीर फेफड़ों का संक्रमण और सांस की तकलीफ तक हो सकती है।
कोरोना वाइरस और बाकी भी सभी प्रकार के जुकाम-खांसी या सांस की तकलीफ पैदा करने वाले दर्जनों वाइरल संक्रमण खाँसने/छींकने, करीब से बातचीत करने और सांस से निकलने वाली हवा से फैलते हैं। खाँसने/छींकने से निकालने वाले द्रव्य के कणों में प्रचुर मात्रा में वाइरस के कण होते हैं और यदि इनसे दूषित सतहों को छूने के बाद हाथों को साबुन-पानी से ना धोया जाये तो भी संक्रमण होने का काफी खतरा होता है।
ऐसे संक्रमण से बचाव एवं इनको फैलने से रोकने का सबसे कारगर तरीका कोविड-19 का टीकाकरण है। अपना समय आने पर सभी को यह टीका जरूर लगवाना चाहिए। यह टीका पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी है।
इसके अलावा महामारी के समय अनावश्यक घर के बाहर न जाना, शादी या अन्य सामाजिक या धार्मिक कार्यक्रमों में सम्मिलित होने से बचना, रिश्तेदारों एवं नजदीकियों से फोन पर ही संपर्क बना के रखना, मंदिर में जाकर पूजा-पाठ से बचना, यदि घर से बाहर जाना ही पड़े तो हमेशा अच्छी तरह से मुह्न एवं नाक को कवर करता हुआ मास्क पहन के रखना, आपस में बातचीत और मेल-मिलाप के वक्त दूरी बना के रखना, और बार-बार साबुन-पानी से हाथ धोना या सेनिटाईजर से अच्छी तरह से हाथ साफ रखना, आदि एहतियात रखने से बीमारी कि संभावना काफी कम हो जाती है।
इस समय कोविड-19 की बीमारी इतनी ज्यादा फैल गई है की घर में किसी भी सदस्य को यदि बुखार, जुखाम, खांसी, गले में किचकिच या निगलने में दर्द होता है तो सभी घरवाले पूरी सावधानी बरतना (मास्क पहन के रखना, आपस में बातचीत और मेल-मिलाप के वक्त दूरी बना के रखना, और बार-बार साबुन-पानी से हाथ धोना या सेनिटाईजर से अच्छी तरह से हाथ साफ रखना) शुरू कर दें एवं यदि संभव हो तो कोविड-19 का टेस्ट भी करा लें। टेस्ट ना करा पाने की स्थिति में अगले दो हफ्ते तक इन सब एहतियात का अच्छी तरह से पालन करें।
क्या ऐसे भी कुछ कारक होते हैं जिनसे यह तय हो कि किन मरीजों में बीमारी ज्यादा बड़ सकती है?
मरीज कि उम्र (ज्यादा उम्र के मरीजो में बीमारी बड्ने का जोखिम ज्यादा होता है), सहरुग्ण परिस्थितियाँ (comorbid conditions) जैसे मधुमेह (diabetes), लंबे समय से उच्च रक्तचाप (hypertension), रोग-प्रतिरोधक क्षमता को दबाने वाली दवाओं (immunosuppresants) का सेवन जैसे एंटी कैंसर या अंग प्रत्यारोपण पर दी जाने वाली दवाएं, आदि नैदानिक स्थितियों (clinical conditions) के साथ एक बहुत ही महत्वपूर्ण जोखिम कारक है कि मरीज में प्रारम्भिक वाइरल लोड कितना था। प्रारम्भिक वाइरल लोड जितना ज्यादा होता है बीमारी बढ़ने का जोखिम उतना ही ज्यादा होता है।
प्रारम्भिक वाइरल लोड कितना था यह इस बात से तय होता है कि मरीज को संक्रामण कहाँ से और कैसे हुआ। घर में पहला संक्रमित होने वाला व्यक्ति ज़्यादातर किसी अंजान मरीज के संपर्क में आने से बीमार होता है। ऐसे मामलों में मरीज से हमारी संपर्क अवधि (contact period) अधिकतर छोटी होती है और इससे प्रारम्भिक वाइरल लोड ज़्यादातर कम ही होता है (हालांकि यदि मरीज कोविड सुरक्षा के प्रोटोकॉल का पालन करने में लापरवाह है तो ऐसे मामलों में भी प्रारम्भिक वाइरल लोड ज़्यादा हो सकता है)।
पहले व्यक्ति के संक्रमित होने के बाद यदि सावधानी नहीं बरती गई तो बाकी घरवालों में संपर्क अवधि काफी ज्यादा होती है और प्रारम्भिक वाइरल लोड ज़्यादा। ऐसे में घर के दूसरे सदस्यों को बीमारी बढ़ने का जोखिम काफी ज्यादा होता है। इसीलिए घर में कोविड-19 के बीमार मरीज का ध्यान पूरी सावधानी के साथ ही रखना चाहिए।
चूंकि कोविड-19 बीमारी लक्षण शुरू होने के पहले से ही मरीज से दूसरे लोगों में फैलनी शुरू हो जाती है, ऐसे में अपने परिवारजनों को मुश्किल से बचाने का एक ही उपाय है कि हम कोविड-19 के सुरक्षा उपयाओं का पूरी सावधानी से पालन करें।
कोविड-19 संक्रमण के क्या लक्षण होते है?
कोविड-19 संक्रमण के शुरुआती लक्षण बुखार, बुखार, जुकाम-खांसी, गले में किचकिच या निगलने में दर्द, बदन दर्द, पीठ में दर्द, सिर दर्द आदि होते हैं। कुछ लोगों को दस्त की शिकायत भी हो सकती है। इन शुरुआती लक्षणों के बाद कुछ लोगों को भूख कम लगना, खाने में स्वाद ना आना, और सुगंध का पता ना चलना आदि भी हो सकते हैं। एक ही वाइरस से संक्रमण के लक्षण अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकते हैं।
ज़्यादातर लोगों में जिनकी उम्र कम और सेहत अच्छी होती है लक्षण कम होते हैं। दस में से आठ लोगों में शुरुआती सात दिनों में ही सारे लक्षण ठीक हो जाते हैं। हालांकि इनमें से कुछ लोगों को लंबे समय तक थकान और कमजोरी महसूस होती रह सकती है।
हालांकि कोरोना वाइरस के कुछ नए म्यूटेंट अच्छी सेहत वाले व्यक्तियों में भी ज्यादा तेजी से और ज्यादा गंभीर बीमारी करने में सक्षम हैं।
फेफड़ों में संक्रमण होना चिंता कि बात होती है और ज़्यादातर लोगों में यह प्रारंभिक लक्षणों के पाँच-से-सात दिन के बाद शुरू होता है। यदि उचित प्रकार से निगरानी कि जाये तो इसका पता सबसे पहले सोते समय या आराम की अवस्था में सांस कि रफ्तार में वृद्धि से चल सकता है (सामान्य स्वस्थ वयस्क व्यक्ति की आराम की अवस्था में सांस की रफ्तार 10—20 /मिनट होती है। छोटे बच्चों की सामान्य सांस की रफ्तार ज्यादा होती है: 2 माह से छोटे शिशु की-- 40—60 /मिनट, 2 माह से 1 वर्ष के शिशु की-- 30—40 /मिनट, 1 वर्ष से 5 वर्ष के शिशु की—20—30/मिनट)। इसमें ऊपरी सीमा से ज्यादा सांस की रफ्तार होने पर (जैसे वयस्क व्यक्ति की सांस की गति एक मिनट में 20 से ज्यादा) यह माना जा सकता है की फेफड़ों में कुछ-न-कुछ नुकसान है।
ज़्यादातर लोगों को सांस कि तकलीफ (जिसका कारण फेफड़ों में संक्रमण होना है) प्रारंभिक लक्षणों के सात-से-दस दिन के बाद शुरू होते है, पर कुछ लोगों को सांस की तकलीफ जल्दी भी चालू हो सकती है।
फेफड़ों में संक्रमण का पता खून में ऑक्सिजन कि कमी (ऑक्सिजन सेचुरेशन /SpO2 के प्रारम्भिक स्तर से कमी होना, सामान्य स्वस्थ व्यक्ति का ऑक्सिजन सेचुरेशन 97% से 100% के बीच होता है) और सांस लेने में तकलीफ से चलता है। ऐसे में व्यक्ति थोड़ा सा चलने या काम करने पर ही हाँफ जाता है एवं सामान्य आराम की अवस्था में भी खून में ऑक्सिजन सेचुरेशन 92% से कम रहता है। ऐसे मरीज को तुरंत ही डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए या अस्पताल जाना चाहिए। यदि किसी को बैठे या लेटे हुये भी सांस कि परेशानी हो रही तो इसका मतलब है कि फेफड़ों में नुकसान ज्यादा बढ़ गया है। पर जिन मरीजों का ऑक्सिजन सेचुरेशन 94% या उससे ज्यादा है उनको ना तो सीटी स्कैन कराने की जरूरत है ना ही उनको अनावश्यक अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है।
बहुत ज्यादा थकान या कमजोरी के कारण कुछ लोग बिस्तर पर ही लेटे रहते हैं और सांस की तकलीफ का पता देर से लग पाता है। यदि सांस की रफ्तार या SpO2 की निगरानी सही प्रकार से की जाये तो बढ़ती बीमारी का पता समय से लगाया जा सकता है।
गर्मी के मौसम में यदि रहने का कमरा ज्यादा गरम हो तो शरीर का तापमान बड़ा हुआ आ सकता है। वयस्क व्यक्तियों में इसका पता आसानी से लग सकता है -- थरमोमीटर पर तापमान 100F से ज्यादा आएगा पर बुखार आने पर होने वाली बेचैनी, कमजोरी, बदन दर्द, आदि नहीं होगी। इसको पर्यावरण बुखार (Environmental Fever) कहते हैं। ज्यादा गर्मी में कमरे को एसी/Air conditioner (सेट टेम्पेरेचर 28--30 C) या कूलर आदि चलाकर कमरे का तापमान नियंत्रण में रखने से परहेज नहीं करना चाहिए।
सीटी स्कैन कब करवाना चाहिए?
छाती का सीटी स्कैन बीमारी की फेफड़ों में होने वाली हानि और उसकी सीमा (extent) का पता लगाने के लिए होता है। डॉक्टर केवल उन्ही रोगियों का सीटी स्कैन करवाने की सलाह देते हैं जिनको सांस लेने में तकलीफ हो रही हो या जिनके खून में ऑक्सिजन सेचुरेशन लगातार 94% से कम हो।
चूंकि सीटी स्कैन जांच में काफी ज्यादा रेडियशन का एक्सपोजर/संसर्ग होता है (एक छाती के सीटी स्कैन में लगभग 400 X- रे के बराबर रेडियशन का एक्सपोजर होता है, और ज्यादा रेडियशन एक्सपोजर शरीर में कैंसर का कारण बन सकता है।) इसीलिए जहां तक संभव हो अनावश्यक सीटी स्कैन जैसी जाँचों से बचना चाहिए। किसी भी जांच, जिसके नुकसान भी हों, को कराने का तभी मतलब होता है जब उसकी रिपोर्ट के जरिये मरीज के इलाज में कोई विशेष परिवर्तन की संभावना हो। जिन मरीजों को सांस की तकलीफ नहीं है और खून में ऑक्सिजन की मात्रा 96% से ज्यादा है उनको छाती का सीटी स्कैन करवाने की कोई खास आवश्यकता नहीं होती है।
कोविड-19 संक्रमण का क्या इलाज है?
ज़्यादातर व्यक्तियों को कोविड-19 का संक्रमण दो-चार दिन के बुखार और सामान्य सर्दी-जुकाम के साथ ही ठीक हो जाता है। खासकर छोटे बच्चों, जवान व्यक्तियों, और शारीरिक रूप से स्वस्थ बुजुर्ग, आदि। जिन व्यक्तियों ने कोविड-19 का टीकाकरण करवाया हुआ है उनको भी ज़्यादातर बीमारी या तो बिलकुल भी नहीं होती है या उसके लक्षण सामान्य फ़्लू संक्रमण से अधिक नहीं होते हैं। हालांकि बदलते हुये वाइरस के स्वरूप के चलते इस बात की कोई गारंटी भी नहीं की टीकाकरण के बाद बीमारी नहीं होगी, इसीलिए जब तक महामारी नियंत्रण में नहीं आती है टीकाकरण के बाद भी मास्क, सामाजिक दूरी (Social distancing), हाथों की सफाई (hand-hygiene), आदि का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
ध्यान देने की बात यह है कि संक्रमण के शुरुआती दिनों में यह बताना बहुत ही कठिन होता है की किस व्यक्ति का संक्रमण ज्यादा बढ़ जाएगा और किसका नहीं। प्रारम्भिक संक्रमण में यदि कोई भारी-जोखिम वाले कारक नहीं हैं (जैसे ज्यादा उम्र, मधुमेह या उच्च रक्तचाप की शिकायत, गर्भावस्था, आदि) तो अधिकतर मरीजों में सामान्य मल्टी-विटामिन (1 गोली दिन में दो बार या या दो चम्मच दिन में दो बार 10--15 दिन तक), विटामिन ए (2,00,000U एक बार में), विटामिन डी (60,000U हफ्ते में एक बार 4--6 हफ्ते तक), विटामिन सी (500 mcg कि 1 गोली दिन में दो बार 10 दिन तक), ओरल ज़िंक (50 mg कि 1 गोली दिन में एक बार 10 दिन तक), आदि से ज्यादा दवाओं की जरूरत नहीं होती है। हालांकि यह सामान्य पूरक हालांकि कोविड-19 की बीमारी पर सीधा असर नहीं डालते, पर जैसा की हम जानते हैं स्वस्थ शरीर में वाइरस से ज्यादा नुकसान की संभावना कम होती है और इन पूरकों की कमी शरीर के रोग-प्रतिरोधक तंत्र को कमजोर कर सकती है।
पौष्टिक खाना और ज्यादा-से-ज्यादा पानी या नीबू पानी या ओआरएस शरीर में पानी की कमी और अनावश्यक कमजोरी से बचाता है। सामान्यतः बुखार आने पर (काँख में अच्छे से लगा कर रखने पर थरमोमीटर में तापमान >100F या 38.2C) साधारण पेरासीटामोल ही पर्याप्त होती है। शुरुआती समय में वाइरस की पुनरावृद्धि (Replication) गले में पाई जाने वाली लिम्फ़ ग्लैंड्स में होता है, तो यदि शुरुआती लक्षणों के साथ ही दिन में कई बार गरम पानी से गरारे शुरू कर दिये जाएँ तो वाइरस की पुनरावृद्धि को कुछ हद तक कम किया जा सकता है (यह बात बाकी सभी फ्लू वाइरस पर भी लागू होती है), हमारे देश के आयुष मंत्रालय के अनुसार आर्युर्वेदिक काड़े और च्यवनप्राश का सेवन हमारे शरीर की इमम्यूनिटी को बड़ाता है।
ठंड में गर्म/कुनकुने और गर्मी में सामान्य पानी पीने से प्यास देर से बुझती है और हम ज्यादा पानी पी पाते हैं जो की शरीर के सामान्य रखरखाव में उपयोगी होता है। ठंडा पानी कम पीने पर भी प्यास जल्दी खत्म होती है और शरीर में पानी की कमी की संभावना बढ़ जाती है।
यदि संभव हो तो योग, ध्यान, गहरी सांस लेने के व्यायाम, शारीरिक कसरत, आदि करते रहें, इससे शरीर चुस्त-दुरुस्त बना रहता है और किसी भी बीमारी से ज्यादा बेहतर लड़ सकता है। इलाज में महत्वपूर्ण बात यह भी है की अनावश्यक घबराएँ नहीं।
प्राणायाम या सांस लेने के व्यायाम और छाती की फिजिओथेरेपी सांस की नलिकाओं को अंदर से खोलने में मदद करते हैं, जिससे फेफड़ों के ज्यादा हिस्से में हवा जा सकती है और शरीर को बेहतर ऑक्सिजन मिलती है। इनको गंभीरता से करने पर यह कई मरीजों को ऑक्सिजन की आवश्यकता और अस्पताल में भर्ती होने से बचा सकते हैं।
जिन व्यक्तियों को भारी-जोखिम वाले कारक हैं (जैसे ज्यादा उम्र, मधुमेह या उच्च रक्तचाप की शिकायत, आदि) उनको डॉक्टर की सलाह से एंटीवाइरल और एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत भी हो सकती है।
लगभग 5% से 10 % मरीजों को ऑक्सिजन की जरूरत हो सकती है।
जिन मरीजों का बुखार सात दिन से ज्यादा बना रहता है या ऑक्सिजन स्तर कम हो रहा है या सांस की रफ्तार बढ़ रही है या ऑक्सिजन थेरेपी की आवश्यकता हो रही है उनको बीमारी के लगभग सातवें दिन से डॉक्टर की सलाह से स्टेरोइड (Dexamethasone, Prednisone, Methylprednisone) दवा काफी फायदेमंद सिद्ध हो सकती है। अब तक की मेडिकल साइन्स की रिसर्च के अनुसार ऑक्सिजन के अलावा सिर्फ स्टेरोइड ही एक मात्र दवा है जो यदि सही समय पर सही मरीज को दी जाये तो मरीज की जान बचा सकती है।
रेमडेसिविर दवा यदि सही समय पर दी जाये (फेफड़ों का संक्रामण होने के शुरुआती दिन से पाँच दिन तक या संक्रमण की शुरुआत के लगभग सात दिन तक) तो वह शायद मरीज का आधे दिन का अस्पताल का ठहराव कम कर सकती है। हालांकि अभी तक की क्लिनिकल रिसर्च के अनुसार रेमडेसिविर दवा बीमार मरीजों के प्राणों की रक्षा कर पाने में सक्षम नहीं है और ज्यादा बीमार मरीजों में रेमडेसिविर दवा अनुपयोगी पाई गई है। विश्व स्वस्थ संगठन (WHO) अभी तक रेमडेसिविर या किसी और एंटीवाइरल दवा के उपयोग को मान्यता नहीं देता है।
वर्तमान में रेमडेसिविर दवा के प्रति मरीजों के रिश्तेदारों का उत्साह अनावश्यक और फिजूल है। विश्व स्वस्थ संगठन (WHO) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार बीमार मरीजों की जान बचाने में डेक्सामेथासोन (Dexamethasone) का मात्र 10 रुपए कीमत का इनजेक्शन या इतनी ही कीमत की प्रेडनिसोन (Prednisone) की गोली किसी भी महंगी दवा से कहीं ज्यादा उपयोगी सिद्ध हुई है। हालांकि यह सभी दवाएं डॉक्टर कि सलाह से ही लेनी चाहिए।
ज्यादा बीमार मरीजों को ज़्यादातर लेटे रहने के कारण और बीमारी के प्रभाव के कारण नसों में खून का थक्का जमने की शिकायत भी हो सकती है, इसके लिए डॉक्टर खून पतला करने की दवा (Anticoagulant) भी साथ में देते हैं, हालांकि जिन मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है उनको यह दवा नहीं दी जाती है।
हालांकि, किसी भी अनावश्यक ली गई दवा की तरह ही, अनावश्यक या डॉक्टर की सलाह के बिना ली गई एंटीबायोटिक, एंटीवाइरल, खून पतला करने की दवा या स्टेरोइड दवाएं नुकसानदायक सिद्ध हो सकती हैं।
डॉक्टर यह कैसे निर्णय करते हैं की कब कौन सी दवा मरीज को देनी चाहिए?
हर बीमारी का एक क्रियाचक्र होता है। जैसे कोविड-19 में, जब हम बिना सुरक्षा के किसी कोविड के मरीज के संपर्क में आते हैं तो वाइरस हमारे श्वसन तंत्र में प्रवेश करके हमारी नाक और गले की म्यूकस मेमब्रेन में चिपक जाते हैं। यहाँ पर यह हमारी श्वसन तंत्र की कोशिकाओं में प्रवेश करके हमारी ही कोशीय मशीन पर कब्जा करके अपनी प्रतिलिपि (Replication) बनाना शुरू कर देते हैं। यह प्रक्रिया कुछ दिन तक चलती है जब तक की यह एक निश्चित संख्या तक ना बाद जाएँ (अधिकतर यह संख्या खरबों में होती है)। जब तक इनकी संख्या सीमित होती है, हमें किसी प्रकार के लक्षण नहीं होते और हमें पता भी नहीं चलता है। इनकी संख्या ज्यादा बढ़ने पर हमारे शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र ज़ोरशोर से इसका विरोध करता है। इसके कारण हमें बुखार, बदन दर्द, सिरदर्द, जुकाम, खांसी, आदि होता है। शुरू के समय में वाइरस तेजी से अपनी प्रतिकृति बना रहा होता है जो की पर कुछ ही दिनों में हमारे रोग-प्रतिरोधक तंत्र के विरोध के चलते यह प्रक्रिया धीमी पड़ने लगती है।
कुछ मरीजों में जिनका रोग-प्रतिरोधक तंत्र कमजोर है (समय से पहले जन्में या कुपोषित शिशु, या शारीरिक रूक से कमजोर वृद्ध, मधुमेह से पीड़ित मरीज) या जो किसी बीमारी के चलते कुछ ऐसी दवाओं पर हैं जो रोग-प्रतिरोधक तंत्र को कमजोर करती हैं (अंग प्रत्यारोपन के मरीज), उनमें वाइरस अपनी प्रतिकृति बनाना (Replicate) कम नहीं करता है और शरीर में ज्यादा नुकसान करता जाता है।
ज़्यादातर श्वसन तंत्र के वाइरल संक्रमण इन लक्षणों के कुछ ही दिनों में ठीक होने लगते हैं। बीमारी के लक्षण ठीक होने लगते हैं और हम बेहतर महसूस करते हैं, और इसका मतलब होता है की हमारे रोग-प्रतिरोधक तंत्र ने वाइरस पर काबू पा लिया है। कभी-कभी ज़्यादातर बच्चों में और कुछ बड़ों में भी खांसी कुछ कई और दिनों तक भी चलती रहती है, यह अधिकतर कुछ समय के लिए हमारे श्वसन तंत्र के ज्यादा संवेदनशील होने के कारण होती है जिसको एलर्जिक कफ़ कहते हैं।
कोविड-19 संक्रमण भी ज़्यादातर मरीजों में इसी प्रकार से व्यवहार करता है (खासकर स्वस्थ बच्चों और वयस्कों में), पर कुछ मरीजों में (खासकर किनमें भारी जोखिम वाले कारक भी होते हैं जैसे मधुमेह/Diabetes) उनमें कोविड के प्रति हमारे शरीर की प्रतिकृया काफी अलग होती है। इनमें से कुछ मरीजों में हमारे शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया देने लगता है इसको साइटोकिन स्टोर्म (cytokine storm) कहते हैं। हमारे रोग-प्रतिरोधक तंत्र की अतिप्रतिक्रिया हमारे शरीर को नुकसानदायक होती है। बुखार का 5--6 दिन से ज्यादा रहना, बहुत ज्यादा कमजोरी, सांस लेने में परेशानी, जल्दी हाँफ जाना, आदि हमारे शरीर के अंदर साइटोकिन स्टोर्म का होना दर्शाता है। हालांकि यह सब परेशानियाँ वाइरस के अप्रतिबंधित प्रतिकृति बनाने पर भी हो सकते हैं।
बीमारी के शुरुआती दिनों में शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र वाइरस से लड़ रहा होता है, इसमें काफी ऊर्जा की जरूरत होती है, इसीलिए इस समय में अच्छा/पौष्टिक आहार, प्रचुर मात्रा में पेय, और सामान्य पूरक (general spplements) ही पर्याप्त होते हैं। जिन व्यक्तियों को भारी-जोखिम वाले कारक हैं (जैसे ज्यादा उम्र, मधुमेह या उच्च रक्तचाप की शिकायत, आदि) उनको डॉक्टर की सलाह से एंटीवाइरल और एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत भी हो सकती है।
जिन मरीजों में डॉक्टर यह निष्कर्ष निकलते हैं की वाइरस अप्रतिबंधित प्रतिकृति बना रहा है (unrestricted replication) उनमें एंटीवाइरल दवाएं काफी कारगर सिद्ध होती हैं। पर जिनमें बीमारी बढ़ने की वजह शरीर के अंदर साइटोकिन स्टोर्म होता है उनमें एंटीवाइरल दवाओं से कोई फायदा नहीं होता। ऐसे मरीजो को रोग-प्रतिरोधक तंत्र को दबाने वाली दवाएं जैसे स्टेरोइड काफी महत्वपूर्ण होती हैं। यहाँ पर यह ध्यान देने वाली बात है की यदि स्टेरोइड दवाओं को बीमारी के शुरुआती चरण में ही दे दिया जाये तो यह हमारे शरीर की वाइरस से लड़ने वाली सामान्य प्रतिक्रिया को ही दबा सकती है जो की वाइरस के प्रतिबंधित प्रतिकृति बनाने (unrestricted replication) को प्रेरित कर देगी।
हर मरीज पर डॉक्टर को मरीज के लक्षण, बीमारी की अवधि, अतिजोखिम कारक और जाँचों आदि के साथ यह तय करना पड़ता है की मरीज बीमारी के किस चरण में है, सामान्य पूरकों के अलावा बाकी दवाएं जैसे एंटीवाइरल, एंटीबायोटिक, और स्टेरोइड आदि दवाओं का निर्णय इन्ही सब कारकों को ध्यान में रख कर किया जाता है।
ऑक्सिजन थेरेपी का निर्णय मरीज के खून में ऑक्सिजन की मात्रा (Pulse Oximeter) और मरीज को होने वाली अन्य सांस की तकलीफ़ों के आधार पर ही किया जाता है। इसमें इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता है की मरीज को यह परेशानी किस कारण से आई है। यदि मरीज के खून में ऑक्सिजन की मात्रा लगातार 88%-90% से कम बनी हुई है और उसे गहरी सांस लेने से भी वह ज्यादा ऊपर नहीं जाती तो उसे डॉक्टर ऑक्सिजन थेरेपी की सलाह दे सकते हैं। ऑक्सिजन थेरेपी पाने वाले मरीजों में यह ध्यान देना आवशयक है की ज्यादा ऑक्सिजन भी नुकसानदायक हो सकती है। कोशिश करनी चाहिए की मरीज का ऑक्सिजन सेचुरिशन 95%-96% से ज्यादा ना जाये। इससे ज्यादा होने पर ऑक्सिजन की मात्रा (flow rate) कम देनी चाहिए।
यदि माँ कोविड पॉज़िटिव है तो?
अभी तक की मेडिकल रिसर्च के अनुसार संक्रमित माँ के दूध से उसके शिशु को कोविड-19 नहीं होता है, बल्कि ऐसे में माँ का दूध बच्चे को ज्यादा गुणकारी होता है। यदि माँ की सेहत इजाजत देती है तो माँ के दूध के फायदे बच्चे में कोविड होने के जोखिम से कहीं ज्यादा होते हैं। शिशुओं में ज़्यादातर संक्रमण उनके ख्याल रखने वालों के मास्क ना पहनने और शिशुओं को देखभाल/छूने के पहले हाथ साफ ना करने के कारण होता है। इसीलिए नवजात शिशुओं की देखभाल करते समय कोविड-19 की सावधानियों का ध्यान रखना अतिआवश्यक है।
यदि घर में कोई कोविड-19 बीमारी से ग्रसित व्यक्ति है तो कैसे प्रबंध करें?
वर्तमान समय में अगर किसी भी व्यक्ति को बुखार, खांसी, जुकाम, आदि लक्षण हैं तो लगभग 50% से ज्यादा संभावना है की उसे कोविड-19 बीमारी ही है। हालांकि इस बात से ज्यादा घबराने की बात नहीं है, क्योंकि जैसा की हम जानते हैं स्वस्थ और कम उम्र के ज़्यादातर लोगों को इससे ज्यादा खतरा नहीं होता है।
बीमारी को घर के बाकी सदस्यों में फैलने से रोकने के लिए घर के अंदर सभी सदस्य अधिक-से-अधिक समय तक अच्छी तरह से मुह्न एवं नाक को कवर करता हुआ मास्क पहन के रखें, कोशिश करें की अनावश्यक रोगी के कमरे में ना जाएँ, रोगी की सेवा के बाद अपने हाथ अच्छी तरह से साबुन-पानी से धोएँ, बारबार सेनिटाइजर का ज्यादा-से-ज्यादा उपयोग करें, रोगी के बर्तन अलग से धोएँ, रोगी का कमरा खुला एवं हवादार हो, कोशिश करें की रोगी की बाथरूम अलग हो या उसका उपयोग अलग-अलग समय पर हो, आदि।
रोगी के देखभाल करने वाला सदस्य डबल मास्क (एक-के-ऊपर-एक दो मास्क) लगा कर रखे तो रोगी के छींकने/खाँसने से होने वाले संक्रमण की संभावना काफी कम हो जाती है।
शुरुआती लक्षणों के साथ ही कोविड-19 RTPCR भी जरूर कराएं, हालांकि नेगेटिव रिपोर्ट का मतलब यह नहीं है की रोगी को कोविड-19 नहीं है।
घर के दूसरे सदस्यों को खासकर नवजात शिशुओं और बुजुर्गों को खास एहतियात के साथ रोगी से दूर रखने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
कोरोना संक्रमण में सबसे बड़ी परेशानी की बात होती है - फेफड़ों का संक्रामण, जिससे सांस लेने में परेशानी एवं शरीर में ऑक्सिजन की कमी हो सकती है। चूंकि आराम की स्थिति में यह परेशानी तभी आती है जब दोनों फेफड़ों का लगभग 40% से ज्यादा हिस्सा बीमारी से संक्रमित हो गया हो, इसीलिए ज़्यादातर मरीजों में फेफड़ों के थोड़े-बहुत संक्रमण का पता नहीं चल पाता है। पर वास्तव में हर मरीज में यह पता लगाने की कोई जरूरत भी नहीं होती है।
कोविड बीमारी में फेफड़ों का संक्रमण सामान्य बात है एवं काफी मरीजों में होता है। चूंकि अस्पताल में भर्ती होने वाले ज्यादातर मरीजों में से बहुत बीमार कम ही होते हैं, ज़्यादातर सिर्फ शरीर में ऑक्सिजन की कमी की सीमारेखा के आसपास ही होते हैं और इनको वास्तव में थोड़ी मात्रा में ही ऑक्सिजन की जरूरत होती है। यह वो मरीज है जो यदि डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं के साथ सांस लेने के व्यायाम और छाती की फिजिओथेरेपी भी करते रहें तो इनमें से ज़्यादातर को अस्पताल में भर्ती होने से बचाया जा सकता है।
(कोविड-19 या अन्य किसी भी बीमारी से होने वाले न्यूमोनिया में फेफड़ों में रोगाणुओं के बहुतायत में पनपने और शरीर के रोग-प्रतिरोधक तंत्र के उनको हटाने के प्रयास में छोड़े गए अत्यधिक कोशिकाओं (phagocytes, killer T cells, etc) और रसायनों (cytokines) के कारण काफी सारा चिपचिपा पदार्थ या बलगम (exudative secretions) निकलता है जो सांस की नलिकाओं (respiratory tract) को अंदर से बाधित (block) कर देता है)।
सांस लेने के व्यायाम और छाती की फिजिओथेरेपी सांस की नलिकाओं को अंदर से खोलने में मदद करते हैं, जिससे फेफड़ों के ज्यादा हिस्से में हवा जा सकती है और शरीर को बेहतर ऑक्सिजन मिलती है।
सांस के व्यायाम:
सभी तरह के प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम आदि सांस के सबसे बेहतरीन व्यायाम हैं (इन्हे यूट्यूब पर विस्तार से देखा जा सकता है)।
गहरी-गहरी सांस लें और उसे कुछ देर के लिए रोक के रखने का प्रयास करें।
गहरी सांस ले कर ज़ोर लगाएँ, जैसा किसी भरी वस्तु को उठाने के लिए या नित्य-क्रिया के समय लगते हैं।
यह सभी दिन में कई बार करें। जब भी याद आ जाए गहरी-गहरी सांस लेना शुरू कर दें। कभी-कभी इससे ज्यादा खांसी भी आ सकती है पर इसमे चिंता की बात नहीं है।
छाती की फिजिओथेरेपी: इसके लिए यदि कोई सहायक हो तो अच्छा है पर ध्यान रखें की वो अच्छी तरह से डबल मास्क या N-95 मास्क पहने हुये हो एवं कमरा अच्छी तरह से हवादार हो। मरीज भी डबल मास्क तो जरूर पहने।
सीधे पलंग पर लेट जायें गहरी-गहरी संस लें एवं पूरी छाती पर हाथ की गदेरी से थपकी दें।
यही कसरत पेट के बल लेट कर एवं दोनों करवट से लेट कर भी करें। (पीठ पर थपकी देने के अलावा मरीज बाकी कसरत स्वयं अकेला भी कर सकता है।
क्या कोविड-19 का टीकाकरण (COVID-19 VACCINATION) करवाना उचित है?
कोविड-19 बीमारी से बचाव का सर्वोत्तम तरीका इसका टीकाकरण ही है। बाजार और सरकारी क्षेत्र में उपलब्ध सरकार द्वारा प्रमाणित और पारित किए गए सभी टीके बीमारी से बचाव में प्रभावी हैं। सरकार द्वारा प्रमाणित सभी टीके पूरी तरह से सुरक्षित हैं और इनमें से किसी के भी कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं पाये गए हैं।
कुछ लोगों में यह भ्रम पाया गया है की टीकाकरण के बाद कुछ समय तक शरीर की इमम्यूनिटी कम हो जाती है और इसीलिए सरकार दूसरे टीका लगने के 15 दिन बाद तक पूरी तरह से सतर्क रहने और मास्क पहन कर रखने की हिदायत देती है। हालांकि यह बात पूरी तरह से गलत है। सरकारी हिदायत का मतलब यह नहीं है की शरीर इतने दिनों तक बीमारी के लिए ज्यादा ग्रहणशील है, बल्कि उसका मतलब यह है की टीके के कारण कोविड-19 के विरुद्ध मिलने वाली इमम्यूनिटी (रोग-प्रतिरोधक क्षमता) तैयार करने में शरीर को थोड़ा समय लगता है। कोई भी टीका शरीर की पुरानी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को कभी भी कम नहीं करता है, बल्कि एक नई बीमारी से बचाने की क्षमता जोड़ता है। बात बस इतनी सी है कि इस कार्य में शरीर को थोड़ा समय लग जाता है।
एक और भ्रम कि यदि व्यक्ति को दूसरा टीका समय से नहीं लग पाया तो पहले टीके का कोई मतलब नहीं रहता है। जबकि ऐसा भी बिलकुल नहीं है। क्लिनिकल ट्रायल्स में यह पाया गया है कि सिर्फ एक टीका भी शरीर कि रोग-प्रतिरोधक तंत्र को उस बीमारी से लड़ने के लिए बेहतर बना देता है। हाँ, यह जरूर है कि दूसरी डोज़ और आगे लगने वाले बूस्टर डोज़ शरीर को बीमारी से लंबे समय तक बचाने के लिए तैयार करते हैं। यदि किसी कारण से आप दूसरा टीका समय पर ना लगवा पाएँ, तो उसके बाद जब भी मौका मिले उसे जरूर से लगवा लें।
अगर किसी को कोविड की बीमारी हो चुकी हो तो वह व्यक्ति भी 4--8 हफ्ते के बाद टीका जरूर से लगवाए।
जैसा कि कहते हैं कि बीमारी के इलाज से उसकी रोकथाम कहीं बेहतर है। तो अपना नंबर आने पर कोविड-19 का टीका जरूर लगवायें।
नियो चिल्ड्रन हॉस्पिटल , सागर , म. प्र. की ओर से आप सभी को अच्छी सेहत और तंदरुस्ती के लिए ढेर सारी शुभकामनायें!